लेकिन आज हम जो लिख रहे है बहुत गर्व महसूस होता है। जहाँ आज एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में हर देश कुछ न कुछ नया कर रहा है। जहाँ आज भारत देश के लोग बहार पड़ने जा रहे है वही एक वक्त ऐसा भी था जब विदेशी छात्र भारत देश में पड़ने आते थे। उस वक्त भारत देश शिक्षा का केंद्र हुआ करता था।
आपको हैरानी होगी भारत देश में दुनियां का सबसे पहले विश्वविघ्यालय की शुरुआत हुई , ऐसे बनाया गया पूरी दुनिया ने इसकी सरहाना की और इतिहास के पनो में यह दर्ज हो गया। जिसे नालंदा विश्वविघ्यालय के नाम से पहचाना गया।
इसकी स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवी सदी में हुई थी। लेकिन सन 1193 में आक्रमण के बाद इसे नेस्तनाबूत कर दिया गया था। बिहार के नालंदा में स्थित उस वक्त बताया जाता है की आठवीं शताब्दी , बाहरवीं शताब्दी के बीच विदशो से छात्र पड़ने आते थे। जहाँ हज़ारो छात्र पड़ते थे वही दूसरी तरफ अधियापको की सख्या भी काफी थी तक़रीबन 1500 से जयादा । नौवी शताब्दी से बाहरवीं शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी।
बनाने वालों ने ऐसा अधभुत बनाया आज यहाँ दुनियांभर के लोग इसे निहारने के लिए आते है। जानकार हैरानी होती है नौ मंजिला , जिसमे लाखों किताबे थी तकरीबन तकरीबन तीन से चार के बीच। तीन सौ कमरे सात विशाल कक्ष एवं पूरा परिसर बड़ी बड़ी दीवारों से घिरा हुआ था। दीवारों की चौड़ाई अपने आप में एक मिसाल है। गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने इसकी स्थापना की थी।
लेकिन आज ऐसी इतहासिक इमारत सिर्फ घूमने फिरने की जगह बन गई। वैसे नालंदा शब्द के पीछे का जो इतीहास है यह सस्कृत से बना है नालं = कमल ज्ञान का प्रतीक दा = यानी की कमल देने वाली , ज्ञान देने वाली , या धर्म ही नहीं ज्योतिष , विज्ञान , राजनीति और कई प्रकार की शिक्षा छात्रों को प्रदान की जाती थी।
इसके पीछे का इतहास और भी है लेकिन यह जान कर ख़ुशी होती है की भारत देश की इस पवित्र भूमि पर ऐसे कई इतिहासिक और जगह भी है जिनके बारे जानकार हैरानी भी होती है और ज्ञान में बढोत्तरी भी।
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नेत्रा