पेन्सिल :- पेन की तरह पेन्सिल भी बड़े काम की चीज़ है। इसे लिखने के लिए तो प्रयोग होता ही है। साथ ही साथ तरह तरह के चित्र बनाने में भी पेंसिल काम आती है। इंजीनयर नक्शा बंनाने में पेंसिल को काम में लेते है। औ मार्कीट में कई प्रकार और रंगो के पेंसिल आज उपलब्ध है।
आज अलग अलग रंग से बनी पेंसिल बच्चो को जहाँ मन को भाती है , वही सबको लुभाती भी है।
यह पेंसिल बहुत बड़ा रुतबा रखती है।
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पेन्सिल शब्द की उत्पति लैटिन भाषा " पेनिकुलस (Penicullus) शब्द से हुई , जिसका अर्थ है , छोटी पूछ। वास्तव में शुरू शुरू में पेंसिल शब्द इस प्रकार के नुकीले ब्रश के लिए प्रयोग होता था। लकिन आज की पेंसिल उस ब्रश से बिलकुल अलग है। पेन्सिल का निर्माण लगभग 200 साल से भी पहले शुरू हुआ था। सुनने में आता है की 500 वर्ष पहले कम्बरलैंड (इंगलैंड ) की एक खान से लोगो ने ग्रेफाइट का पता लगाया।
तब इससे कुछ पेंसिल बनाई गए थी। गग्रेफाइट का प्रयोग बड़े पैमाने पर 1760 में न्यूरेबर्ग (जर्मनी) के फेबर परिवार ने किया। ,लेकिन पेंसिल बंनाने में इन्हे अधिक सफलता नहीं मिली। .
1765 एन जे कोते नाम के व्यक्ति ने ग्रेफाइट में चिकनी मिट्टी मिलाई और इस मिश्रण की सलाईया बनाकर भट्टी मैं तपाया। इन्ही सलाइयों से पेंसिल बनाई गयी। जो बहुत लोकप्रसिद्ध हुई।
1765 एन जे कोते नाम के व्यक्ति ने ग्रेफाइट में चिकनी मिट्टी मिलाई और इस मिश्रण की सलाईया बनाकर भट्टी मैं तपाया। इन्ही सलाइयों से पेंसिल बनाई गयी। जो बहुत लोकप्रसिद्ध हुई।
सुनने में आया जिन पेंसिल को हम लेड पेंसिल कहते है बल्कि वह भी गग्रेफाइट से बनाई जाती है। .
हमने
हमने
हमने एक और किताब में पड़ा था की संसार में 350 अधिक प्रकार की पेन्सिल अलग अलग कामो बनाई जाती है। ऐसे पेन्सिल भी बनाई जा चुकी है , जिनसे कांच , कपडा, प्लास्टिक और फिल्मो पर लिखा जा सकता है।
ऐसे पेंसिल भी बन रही है जिनका लिखा हुआ वर्षो तक भी धुंधला नहीं पड़ता।
ऐसे पेंसिल भी बन रही है जिनका लिखा हुआ वर्षो तक भी धुंधला नहीं पड़ता।
आज अलग अलग रंग से बनी पेंसिल बच्चो को जहाँ मन को भाती है , वही सबको लुभाती भी है।
यह पेंसिल बहुत बड़ा रुतबा रखती है।
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